अंग्रेजी वर्ष में परिवर्तन।
कैलेंडर का नवांकन।।
अंक 2020 बदला 2021 में।
पर मैं बदला नहीं स्वयं में।।
मन नहीं राजी मानने,
ये नयेपन का एहसास।
अंतर्मन है, चैत्र माह की,
शुक्ल प्रतिपदा के पास ।।
धुंध कोहरे ठंड में बनी,
सदियों की एक ही अंधेरी राह।
इसे नया परिवर्तन मानने का,
ठगे हुये लोगों का झूठा उत्साह।।
इस पूंजीवादी ढोंग की भेंट चढ़ी,
प्रकृति की अपार सुन्दरता।
पीढ़ी सदियों की पीढ़ी को,
पथभ्रष्ट करने की आतुरता।।
स्वराष्ट्र स्वसंस्कृति स्वमूल्यों की
पावन शक्ति को,
सदैव पराजित करती रही।
आतुरता पथभ्रष्ट की
न्यू इीयर रात्रि की
मांस-मदिरा में डूब,
विजय गीत गाती रही।।
सोचता हूं ऐसा,
कब तक चलता रहेगा।
कब तक चैत्र का सूरज,
अंधे-ठंडे पूष से हारता रहेगा।।
यही तो विडंबना है कि नकल में अकल भी भ्रष्ट हो जाती है और समझ कहीं खो जाती है । चैती सूरज को हम ही हराते रहेंगे ।
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