अंत्येष्टि एक
की थी
उसमें, मृत्यु निर्दयी
चौबीस को खा गयी।
अपना ताण्डवी,
विनाशी विप्लवी
नव रूप दिखला गयी।।
बनकर मृत्यु, कर रही
प्रकृति, मनुष्यों
को सचेत।
घटाने जनसंख्या का
बारंबार दे रही संकेत।।
अधि जनसंख्या के
मध्य
कुछ भी हो नहीं
सकता,
उपयोगी उचित समुचित।
चाहे कोयी कैसा
आ जाय
नहीं नियंत्रित
कर सकता,
पगानेक भीड़ के अनुचित।।